बहुत अजीब है ‘जैन धर्म में अंतिम संस्कार’ करने की प्रक्रिया। ये एक ऐसा धर्म है जिसमें व्यक्ति की मृत्यु से पहले भी होता है अंतिम संस्कार।
जीवन और मृत्यु जीव के जीवन के दो पहलू हैं। इस संसार में जिस जीव ने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित है। मृत्यु जीवन का एक ऐसा सच है, जिसे कोई बदल नहीं सकता। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मृत्यु तो सिर्फ जीव के शरीर की होती है जबकि उसकी आत्मा अजर और अमर है, और मृत्यु के बाद एक शरीर को त्याग कर दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती है। यही वजह है कि हर धर्म में यह माना जाता है कि जब इंसान की मृत्यु होती है तो मात्र शरीर खत्म होता है, जबकि आत्मा एक नए सफर पर निकल जाती है, और आत्मा को तब तक उसकी मंजिल नहीं मिलती है, जब तक भली-भांति उसका अंतिम संस्कार नहीं किया जाता। अंतिम संस्कार के बाद ही आत्मा को मुक्ति मिलती है और उसके नए जीवन की शुरुआत होती है।
अंतिम संस्कार से जुड़े नियम अलग-अलग देश और धर्म में अलग-अलग है। इस पोस्ट की जरिए हम जानेंगे ‘जैन धर्म में अंतिम संस्कार’ कैसे किया जाता है ?
जैन धर्म में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया

जैन धर्म में अंतिम संस्कार करने की प्रक्रिया अन्य धर्मों की तुलना में बहुत अलग है। ये एकमात्र ऐसा धर्म है जिसमें व्यक्ति की मृत्यु के पहले भी अंतिम संस्कार होता है। यह प्रक्रिया सुनने में जितनी अजीब लग रही है, असल में भी उतनी ही अजीब है। जैन धर्म की प्राचीन धार्मिक मान्यता में व्यक्ति द्वारा खुद अपनी मृत्यु का समय निर्धारित करने का प्रावधान था। इस धार्मिक मान्यता के अनुसार जैन धर्म में जब किसी व्यक्ति को अपने जीवन से मुक्ति चाहिए होती है या किसी व्यक्ति को ये एहसास होता है कि उसकी मृत्यु करीब है, तो वो अपने भूख- प्यास का त्याग कर देता है। और ये प्रक्रिया तक तक चलती रहती है जब तक उस व्यक्ति की मृत्यु नहीं हो जाती। इस पूरी प्रक्रिया को ‘सल्लेखना उपवास‘ के नाम से जाना जाता है।
क्या है सल्लेखना की प्रक्रिया

सल्लेखना अथवा समाधि जैन धर्म की एक बेहद महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। जैन धर्म से जुड़े किसी व्यक्ति को जब यह प्रतीत होता है की मौत उसके बेहद करीब है तो वो खुद खान -पान को त्याग कर ‘सल्लेखना उपवास’ अथवा समाधि की अवस्था में चला जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को जैन धर्म में अंतिम साधना की प्रक्रिया माना गया है। जैन धर्म की धार्मिक मान्यता के अनुसार इस उपवास के जरिए ही जीव को मोक्ष की प्राप्ति मिलती है और उसकी आत्मा को मुक्ति मिलती है।
मृत्यु के पश्चात दी जाती है अग्नि

जैन धर्म में जब किसी की मृत्य हो जाती है, तो समाधि की अवस्था में ही उसके शरीर को अग्नि के हवाले कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया को लिए किसी नियम अथवा रीति रिवाज की विधि नहीं अपनाई जाती। दरअसल जैन धर्म की धार्मिक मान्यता के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा के दूसरे शरीर में प्रवेश करने में एक सेकंड का भी समय नहीं लगता, और आत्मा तुरंत नए शरीर में प्रवेश कर जाती है। यही वजह है कि जैन धर्म में अंतिम संस्कार के नियम को विशेष महत्व नहीं दिया जाता है।
कैसे किया जाता है जैन मुनियों का अंतिम संस्कार

जैन धर्म में जितने भी गुरु हुए हैं, उन्होंने सल्लेखना का पालन कर समाधि की मुद्रा में ही मोक्ष की प्राप्ति की है। जैन मुनियों के पार्थिव देह को मुखाग्नि देने से पहले पालकी में बिठाकर उनकी अंतिम यात्रा निकाली जाती है। इस दौरान इन्हें पद्य आसन की मुद्रा में तख्ते से बांधकर पालकी में बिठाया जाता है। और फिर उनकी अंतिम यात्रा निकाली जाती है। इस दौरान जैन धर्म के लोगों द्वारा उनके पार्थिव शरीर की बोली लगाई जाती है। और इस प्रक्रिया के जरिए इकट्ठा किए गए धन का उपयोग धार्मिक कामों जैसे मंदिर निर्माण, गरीबों की सेवा इत्यादि के लिए किया जाता है।
अंतिम यात्रा की प्रक्रिया पूरी होने के पश्चात जैन मुनियों के पार्थिव शरीर को मुखाग्नि दी जाती है, इसके लिए सर्वप्रथम जैन मित्रों का उच्चारण होता है, तत्पश्चात मुक्त आत्माओं का विस्मरण करते हुए मृत आत्मा के उत्थान की कामना करते हुए पार्थिव शरीर को मुखाग्नि दी जाती है। जैन धर्म में मुनियों अथवा संतो के अस्थियों को नदी में विसर्जित करने का नियम नहीं है। जैन संतो अथवा मुनियों के अस्थियों को कलश में रखकर हम दोनों के बच्चों को कलश में रखकर जमीन के अंदर गाड़ दिया जाता है और उसपर उस संत की समाधि बना दी जाती है।
नोट: भारत के कानून में जैन धर्म में निभाई जाने वाली ‘सल्लेखना’ की प्रक्रिया को आत्महत्या की श्रेणी में रखा गया है।
Be First to Comment